12 लोकसभा सीटों से मायावती की शुरुआत, दलितों में आशंका BJP के लिए बैटिंग करने उतरेंगी बहन जी
लोकसभा चुनाव 2024 में तेजी से बढ़त बनाते हुए भाजपा आगे बढ़ती हुई दिख रही है। हालांकि इस बढ़त के बावजूद भी भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व काफी परेशान और चिंतित दिखाई दे रहे हैं, जानकारों के मुताबिक इसका एक बहुत बड़ा कारण बेरोजगारी, महंगाई और प्राइवेटाइजेशन के साथ उनके खुद के नेताओं का आंतरिक कलह भी है। वहीं भाजपा की इस बढ़त में ईडी सीबीआई और इन्कम टैक्स भरपूर साथ दे रहे हैं ऐसा आरोप लगातार विपक्ष के नेता लगा रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी की तरफ से राहुल गांधी पिछले एक वर्ष से बेरोजगारी, महंगाई और सरकारी कंपनियों को अमीरों को बेचने का आरोप लगाकर केंद्र सरकार पर जोरदार हल्ला बोल रहे हैं। वहीं हर चुनाव में टॉप क्लास का मुफ्त वाला भाषण और यू टर्न लेने के मशहूर आम आदमी पार्टी चीफ अरविंद केजरीवाल इस समय खामोश दिख रहे हैं या यू कहें की उनको खामोश रहने के लिए ही फील्ड में उतारा गया है, फिलहाल उनके 3 मंत्री समेत वो खुद शराब घोटाले में जेल से ही बतौर सीएम अपनी सरकार चला रहे हैं और हाल ही में आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह बाहर आए हैं जो फिलहाल लोकसभा प्रत्याशियों की चर्चा के बजाए दिल्ली के ही अपने विधायकों को बनाए रखने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
लेकिन एक बात इस बार के लोकसभा चुनावों में बहुत ही गंभीर दिखाई पड़ रही है वो है बसपा का खामोश रहना और मायावती का अपने भतीजे आकाश को सामने रखकर बैकफुट पर बैटिंग करती हुई दिख रही हैं। बसपा का गिरता हुआ जनाधार और मायावती की ऐसी खामोशी को लेकर बसपा के नेता जो करोड़ों रु देकर टिकट खरीदते हैं वो खुद भी अपने पैसों को डूबते हुए देख रहे हैं। क्योंकि वो भी कैडर वोट यानी मूल जनाधार के साथ मिलने वाले मुस्लिम वोटों के सहारे ही फाइट करने मैदान में उतर रहे हैं।
जहां हर बार चुनावों में मायावती केंद्र सरकार पर भेदभाव और धन्नासेठों का साथ देने का आरोप लगाती थीं, मायावती का वो तेवर, बसपा का वो रुतबा फिलहाल गायब है।
बसपा कार्यकर्ताओं का जोश जो 2014 के लोकसभा चुनावों के समय शून्य हो चुका था अब वो एक अजीब से सन्नाटे की ओर बढ़ चला है। क्योंकि उस समय मायावती आक्रामक थीं भले ही सीट न मिली हों लेकिन वोट प्रतिशत में बहुत मामूली बदलाव हुआ था। जबकि 2022 के विधानसभा चुनावों से ही मायावती की खामोशी उनके कार्यकर्ताओं को परेशान कर रही है। क्योकि बड़ी मुश्किल से 2019 के लोकसभा चुनावों में मायावती को 10 सीटों पर जीत हासिल हुई थी हालांकि इसमें मायावती से ज्यादा समाजवादी पार्टी का योगदान था क्योंकि अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव और पिता मुलायम सिंह यादव के साथ हुए मायावती के तल्ख रिश्तों से आगे बढ़कर एक नई लकीर खीचने का प्रयास किया था बस इसी गठबंधन ने बसपा में जान फूँक दी लेकिन अखिलेश यादव की पार्टी पूरी तरह से टूट कर बिखर गई।
वहीं इन चुनावों में जब पहले चरण की वोटिंग को अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं तो बसपा की ओर से ऐसा कहा जा रहा है कि मायावती 14 अप्रैल से फील्ड में उतरने को तैयार हैं। इसमें पश्चिमी यूपी में पड़ने वाले पहले और दूसरे चरण के कुल 10 लोकसभा सीटों को कवर किया जाएगा। अब इन रैलियों से वो क्या संदेश देंगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन एक बात साफ है कि मायावती खुद चाहती थीं कि उनके नेता दूसरी पार्टियों की ओर रुख करें वरना चुनाव का पहला चरण होने तक उनके दरवाजे जहां करोड़ों रु लेकर जहां नेताओं की लाइन लगती थी वहीं अब पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय तक में कार्यकर्ताओं की संख्या भी शून्य और चारों ओर सिर्फ सन्नाटा सा छाया हुआ है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली ये है कि मायावती के आँख और कान कहे जाने वाले सतीश चन्द्र मिश्रा भी 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से साइलेंट जोन में चले गए हैं उन्हें पिछले 2022 के विधानसभा चुनावों में भी शायद ही एक्टिव तौर पर देखा गया हो।
मायावती का फील्ड पर नहीं जाना और नेताओं से नहीं मिलने का नुकसान लगातार हो रहा है। जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं उनमें भी मजबूत जनाधार होने के बावजूद बसपा शून्य पर आउट हो गई है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को झटका लगा है. जबकि मध्य प्रदेश विधानसभा में पिछली बार उसके पास दो सीटे थीं और इस बार शून्य। शून्य से सन्नाटा कब तक रहेगा फिलहाल बसपा वाली बहन जी ही बता सकती हैं। तब तक के लिए नमस्कार।